बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान के प्रश्नोत्तर
प्रश्न- शाब्दिक सीखना की संगठनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
शाब्दिक सीखना में संगठनात्मक कारकों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
शाब्दिक सीखना में संगठनात्मक प्रक्रियाएँ
मानव सीखना में विशेषकर शाब्दिक सीखना में संगठनात्मक कारकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। इस प्रविधि में प्रयोज्य को सीखे गए शाब्दिक एकाशों को चाहे वे जिस क्रम में प्रत्याह्वान करना चाहे. प्रत्याह्वान करने की छूट होती है। प्रत्याह्वान में प्रयोज्यों द्वारा दिखलाये गए कुछ संगतता के सबूत मिले। अतः संगठनात्मक प्रक्रिया को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि इससे तात्पर्य उन प्रक्रियाओं से होता है जिनके द्वारा सूचनाओं के निवेश तथा निर्गत के बीच परिवर्तन किया जाता है। यहाँ व्यक्ति निवेशित सूचनाओ को क्रमबद्ध कर सकता है उसका विस्तरण कर सकता है. चयन कर सकता है, आपस में सम्बन्धित कर सकता है तथा उसे सुविधानुसार परिवर्तित कर सकता है।
"संगठन से तात्पर्य वैसे मानसिक संरचना से होता है जो देखे गए या सीखे गए शाब्दिक एकाशों, घटनाओं तथा विशेषताओं के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है। मैन्डर के अनुसार (1972) मानव सीखना तथा धारणा के क्षेत्र में शाब्दिक एकाशों की सूचियों के सहारे किए गए प्रयोगो से यह स्पष्ट हुआ कि व्यक्ति दो तरह के संगठनात्मक उपायों को अपनाता है। इन दोनों तरह के संगठनात्मक प्रविधियों का वर्णन निम्नांकित है
(i) गुच्छन प्रविधि - गुच्छन प्रविधि वह प्रविधि है, जिसमें सीखने के लिए दिए गए शाब्दिक एकाशों के प्रत्याह्वान में प्रयोज्य द्वारा जो संगठनात्मक प्रक्रियाएँ होती हैं, उसका आधार प्रयोगकर्त्ता द्वारा उन एकाशों को एक निश्चित श्रेणी से चुना जाना या उन्हें आपस में सम्बन्धित करना होता है। गुच्छन विधि निम्नांकित दो प्रकार की होती है -
(a) श्रेणी गुच्छन- श्रेणी गुच्छन प्रविधि का प्रतिपादन बोसफील्ड (1953) द्वारा किया गया। श्रेणी गुच्छन से तात्पर्य शाब्दिक एकांशों के प्रत्याह्नान में एक ऐसे गुच्छन से होता है, जिसका आधार उन एकाशों की विशेष श्रेणियाँ होती हैं। मनोवैज्ञानिकों ने दो तरह की श्रेणियों के गुच्छन तथा सम्पूर्ण प्रत्याह्वान पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया है। ये दो श्रेणियाँ है - सम्पूर्ण श्रेणी तथा असम्पूर्ण श्रेणी।
सम्पूर्ण श्रेणी में उस श्रेणी को रखा जाता है, जिसके सभी सदस्यों को सूची में सम्मिलित कर लिया जाना सम्भव हो पाता है। जैसे - सौर मंडल के ग्रह सम्पूर्ण श्रेणी के उदाहरण हैं।
असम्पूर्ण श्रेणी में उस श्रेणी को रखा जाता है, जिसके सभी सदस्यों को सूची में सम्मिलित कर लिया जाना सम्भव नहीं हो पाता है। जैसे सब्जी के नाम, शहर के नाम इत्यादि। कोहेन ने अपने प्रयोग में इन दोनों तरह के श्रेणियों के गुच्छन एवं समस्त प्रत्याह्मान पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया और परिणाम में यह देखा गया है कि सम्पूर्ण श्रेणी के होने से असम्पूर्ण श्रेणी की तुलना में समग्र प्रत्याह्मान तथा गुच्छन दोनों में ही वृद्धि हो जाती है।
(b) साहचर्यात्मक गुच्छन- साहचर्यात्मक गुच्छन में जो शाब्दिक एकांश होते हैं वे स्पष्टत किसी एक श्रेणी के नहीं होते हैं, परन्तु उनमें ऐसा साहचर्य अवश्य रहता है कि एक को सुनकर या देखकर दूसरे का प्रत्याह्मान किया जा सकता है। जैसे पेड़-सेब, मन-चिन्तन, कार-पहिया आदि।
प्रयोगों के आधार पर निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि गुच्छन से शाब्दिक एकांशों के धारण शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है। फलतः शाब्दिक सीखने की दर तीव्र होती है।
(ii) आत्मनिष्ठ संगठन प्रविधि - आत्मनिष्ठ संगठन एक दूसरी प्रमुख संगठनात्मक प्रक्रिया है जिसका प्रतिपादन तुलभिंग (1962) द्वारा किया गया है। आत्मनिष्ठ संगठन में प्रयोज्य शाब्दिक एंकाशों की सूची में कुछ अपनी ओर से संगठनात्मक उपाय को ढूँढता है और इस अर्थ में यह प्रक्रिया बोसफील्ड के श्रेणी गुच्छन से भिन्न है, जिसमें विशेष श्रेणी के शब्दों का होना प्रयोज्य के लिए प्रत्याह्यान में संगठनात्मक प्रक्रिया को लाता है।
आत्मनिष्ठ संगठन के स्वरूप को दिखाने के लिए तुलभिंग द्वारा कई प्रयोग किए गए हैं। इन प्रयोगों का सामान्य डिजाइन इस प्रकार होता है। प्रयोज्यों को शाब्दिक एकाशों अर्थात् शब्दों की एक लम्बी सूची एक-एक करके यादृच्छिक क्रम में उपस्थित किया जाता है। ये सभी शब्द अलग-अलग श्रेणियों के होते हैं न कि किसी एक या दो श्रेणी के होते है। प्रयोज्यों से यह कहा जाता है कि वे उन शब्दों को चाहे जिस क्रम में प्रत्याह्मान करना चाहते हैं, प्रत्याह्मान करें। इन प्रयोगों का निष्कर्ष यह था कि जैसे-जैसे प्रयास बढ़ते जाते हैं, प्रयोज्यों के प्रत्याह्मान में एक तरह की संगतता उत्पन्न होने लगती है।
मैण्डलर ने अपने अध्ययन के आधार पर यह बतलाया है कि मानव सीखना तथा धारण में संगठन का सबसे सामान्य प्रारूप पदानुक्रमिक होता है। व्यक्ति सीखे गए शाब्दिक एकांशों को क्रमिक रूप से संगठित कर लेता है, क्योंकि इससे उन्हें धारण करके रखना आसान हो जाता है। मैण्डलर का कहना है कि टुलभिंग के प्रयोज्यों द्वारा आत्मनिष्ठ संगठन का उपयोग इसलिए किया गया, क्योंकि उन्हें प्रत्येक प्रयास में शब्दों को एक भिन्न क्रम में उपस्थित किया जाता था। अगर उन्हे प्रत्येक प्रयास में शब्दों को एक ही क्रम में उपस्थित किया गया होता, तो वे उस क्रम विशेष को ही संगठन का आधार अवश्य ही बनाते।
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- प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन का अर्थ और उसकी आधारभूत प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अधिगम अन्तरण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार बताइये।
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- प्रश्न- स्मृति की परिभाषा दीजिये। स्मृति में सुधार कैसे किया जाता है?
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